आखिर क्यों होती है नपुंसकता, जानें कारण और इलाज का तरीका
सेक्शुअल इंटरकोर्स के दौरान इरेक्शन न होने की वजह से पेनिट्रेशन में दिक्कत आने की समस्या को इरेक्टाइल डिस्फंक्शन या आम भाषा में नपुंसकता कहते हैं। गलत लाइफस्टाइल की वजह से इन दिनों पुरुषों में यह कॉमन समस्या बन गया है।
इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जिसे आम बोलचाल की भाषा में नपुंसकता भी कहते हैं उन पुरुषों के लिए इस्तेमाल होने वाला टर्म है जिन्हें सेक्स के दौरान या तो इरेक्शन बिलकुल नहीं होता या फिर अगर होता भी है तो वे इरेक्शन को बरकरार नहीं रख पाते और वह कुछ सेकंड में ही खत्म हो जाता है। वैसे तो इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या किसी भी उम्र के पुरुष को हो सकती है लेकिन आमतौर पर यह समस्या 40 साल से अधिक उम्र के पुरुषों में ज्यादा देखी जाती है।
आखिर क्या है इरेक्टाइल डिस्फंक्शन?
Jaब कोई पुरुष सेक्शुअली उत्तेजित हो जाता है तो उसे इरेक्शन महसूस होता है और उसका दिमाग उसके प्राइवेट पार्ट की नसों को वहां खून का प्रवाह बढ़ाने का सिगनल भेजता है। इसे ही इरेक्शन कहते हैं। लेकिन जब सेक्शुअली उत्तेजित होने के बाद भी पेनिट्रेशन के लिए इरेक्शन न हो पाए और दोनों पार्टनर सेक्शुअली असंतुष्ट रह जाएं तो इस समस्या को इरेक्टाइल डिस्फंक्शन कहा जाता है। इरेक्टाइल डिस्फंक्शन यानी नपुंसकता 2 तरह की होती है- शॉर्ट टर्म और लॉर्ग टर्म।
इरेक्टाइल डिस्फंक्शन या इडी या नपुसंकता एक सामान्य समस्या है जिसके पीछे लाइफस्टाइल से जुड़ी कई वजहें शामिल हैं। जैसे- काम का बहुत ज्यादा स्ट्रेस, थकान, बेचैनी, किसी बात की चिंता, बहुत ज्यादा शराब का सेवन, परफॉर्मेंस प्रेशर आदि। इस तरह के मामलों में नपुंसकता कुछ समय के लिए होती है और जैसे ही आप अपनी लाइफस्टाइल में सुधार करते हैं यह समस्या भी ठीक हो जाती है। शॉर्ट टर्म नपुंसकता के लिए डॉक्टर से इलाज की जरूरत नहीं होती।
60% पुरुषों में होती है यह समस्या
इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या का इलाज कैसे होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि आखिर इसके होने की वजह क्या है। अगर आपकी समस्या स्ट्रेस, लाइफस्टाइल या इमोशन से जुड़ी है तो इसके इलाका के लिए आपको सेक्स एक्सपर्ट से मिलकर सेक्स थेरपी या बिहेवियरल थेरपी लेने की जरूरत पड़ सकती है। बहुत से डॉक्टर इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के इलाज के लिए वायग्रा जैसी दवाइयों का सेवन करने की सलाह भी देते हैं। इन दवाओं के सेवन से प्राइवेट पार्ट में ब्लड का फ्लो बढ़ जाता है और इरेक्शन की समस्या खत्म हो जाती है।
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